बुतपरस्ती की इब्तेदा (ORIGIN OF IDOL WORSHIP)
sahih bukhari Volume 6, Book 60, Number 442 :
Narrated by Ibn Abbas
"Indeed these five names of righteous men from the people of Noah (pbuh). When they died Shaytan whispered to their people to make statues of them and to place these statues in their places of gathering as a reminder of them, so they did this. However, none from amongst them worshipped these statues, until when they died and the purpose of the statues was forgotten. Then (the next generation) began to worship them."
आज कल लोगो ने कब्र को पूजना शुरू कर दिया है
*नूह (अलैहिस्लाम) जिस कौम मे मबउस थे उस कौम मे पाँच नेक सालेहीन नेक बुजुर्ग औलिया अल्लाह थे |
– उनकी मज्लिशों मे बैठकर लोग अल्लाह को याद करते थे और मसाइल सुनते थे,
– इससे उनके दीन को तक्वियत पहुचती थी|
– जब वे ग़ुजर गए तो क़ौम मे परेशानी हुई कि अब न वो मज्लिस रही न वो मसाइल रहे, अब कहा बैठे ?
– उस वक्त शैतान ने उनके दिलों मे यह फूंक मारी कि इन बुजूर्गों की इबादतगाहों मे उनकी तस्वीर (बूत) बनाकर अपने पास रखलों |
– जब उन तस्वीरों को देखोगे तो उनका जमाना याद आ जाएगा और वह क़ैफियत पैदा हो जाएगी|
– तो उन के पाँचों के मुजस्समें बनाए गए और उन पाँचों का नाम था (1) वद , (2) सुवाअ , (3) यग़ूस , (4) नसर , (5) यऊक | उनका कुरआन मे जिक्र है ये पाँच बुत बनाकर रखे गए !
– उनका मक्सद सिर्फ तज़्कीर था की उन तस्वीरों(बुतो) के जरीए याद दिहानी हो जाएगी | उनको पूजना मक्सद नही था | शूरू मे जब तक लोगो के दिलों मे मारिफत रही, उन बुजूर्गों के असरात रहे |
– लेकिन जब दुसरी नस्ल आई तो उनके दिलों मे वह मारफत नही रही उनके सामने तो यही बुत थे |
– चूनांचे कुछ अल्लाह की तरफ मुतवज्जेह हुए और कुछ बुतों की तरफ मुतवज्जेह हुए |
– और जब तीसरी नस्ल आई तब तक शैतान अपना काम कर चुका था | उनके दिलों मे इतनी भी मारफत नही रही | उनके सामने बुत ही बुत रह गए | उन्ही को सज़्दा , उन्ही को नियाज उन्ही की नजर यहा तक की शिर्क शुरू हो गया | फिर तो नजराने वसूल किए जाने लगे मेंले और उर्स न जाने क्या क्या खुरापात शुरू हो गई ,..
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– (तफ़्सीरे इब्ने कसीर:पारा 29 ,पेज. 42 ,सूर: नूह के दुसरे रूकूअ मे
Ibn 'Abbas, may Allah be pleeased with him, said:
"Between Noah and Adam were ten generations, all of them were upon shari'ah (law) of the truth, then they differed. So Allah sent prophets as bringers of good news and as warners."
Related by Ibn Jarir at-Tabari in his tafsir (4/275) and Al-Hakim (2/546) who said, "It is authentic according to the criterion of Al-Bukhari." Adh-Dhahabi also agreed

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