*क़ब्र परस्ती और अल्लाह उसके रसूल ﷺ का पैग़ाम।*
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हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है
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हमारे मआशरे में एक शिर्क देखने को मिलती है जो एक खास तबके के अंदर कुछ ज़्यादा ही है
*और वो है मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना,* वहां सजदे करना और फिर मजार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियां पढ़ना वगैरह वैगरह..
*ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ?*👇👇
जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मजार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा.
मगर अल्लाह फरमाता है :
मगर अल्लाह फरमाता है :
देखो, इबादत खालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता.
📖(सुरह जुमर, आयत नंबर 3)
गौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं जबकि
अल्लाह फरमाता है:
अल्लाह फरमाता है:
भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो.
📖(सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62)
📖(सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62)
अल्लाह के सिवा कोई हमे नफा या नुक्सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्म्दी लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है.
अल्लाह फरमाता है:
और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये
अल्लाह फरमाता है:
और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये
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