*तरावीह 20 और 8 एक तफसीली जाएज़ा*
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तरावीह, तहज्जुद, क़ियामे रमज़ान या क़ियामुल लैल एक ही नमाज़ के अलग-अलग नाम हैं. जो नमाज़ साल के 11 महीनों में तहज्जुद होती है वही रमज़ान में तरावीह बन जाती है. अहादीस में आम तौर से क़ियामे रमज़ान या क़ियामुल लैलअल्फ़ाज़ का इस्तेमाल हुआ है. तरावीह लफ्ज़ का इस्तेमाल बाद में शुरू हुआ.
*रसूलुल्लाह ﷺ के दौर में तरावीह*
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अबू हुरैरह (रज़ि०) फ़रमाते हैं कि “ रसूलुल्लाह ﷺ हमें क़ियामे रमज़ान (तरावीह) की तरग़ीब दिया करते थे लेकिन इसकी ताकीद नहीं करते थे और फ़रमाते थे कि जिसने ईमान की हालत में सवाब की नियत से रमज़ान की रात में क़ियाम किया तो उसके पिछले गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे.”
📚﴾ मुस्लिम ह० 1780 ﴿
*इस हदीस से मालूम हुआ कि यह नमाज़ मुस्तहब है, वाजिब या सुन्नते मुअक्किदह नहीं.*
*रसूलुल्लाह ﷺ ने 3 रातों तक तरावीह पढ़ाई*
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रसूलुल्लाह ﷺ ने रमज़ान के आख़िरी अशरे में सहाबा को 3 रातों तक तरावीह पढ़ाई, लेकिन चौथी रात नहीं पढ़ाई. चौथी रात आप ﷺ अपने हुजरे से बाहर निकले और फ़रमाया “ मुझे तुम्हारे यहाँ जमा होने का इल्म था लेकिन मुझे डर हुआ कि कहीं यह नमाज़ तुम पर फ़र्ज़ न कर दी जाए.”
📚﴾बुख़ारी ह० 1129, 2012 ﴿
👆 *इससे पता चला कि तरावीह की नमाज़ ख़ुद नबी ﷺ ने जमात से पढ़ाई, लेकिन उम्मत पर मशक्क़त की वजह से इसकी पाबंदी नहीं की*.
*रसूलुल्लाह ﷺ ने 11 (8+3) से ज़्यादा नही पढ़ी.*
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आइशा (रज़ि०) से पूछा गया कि नबी ﷺकी रमज़ान में (रात की) नमाज़ कैसी होती थी. तो उन्होंने फ़रमाया ‘ रमज़ान हो या ग़ैर रमज़ान, रसूलुल्लाह ﷺ 11 रकअ़त से ज़्यादा नहीं पढ़ते थे.
📚 ﴾ बुख़ारी ह० 1147,2013 ﴿
👆 इस हदीस को इमाम बुख़ारी (रह०) ने ‘तहज्जुद’ (ह० 1147) और ‘तरावीह’ (ह० 2013) दोनों बाब में बयान किया है, जो इस बात की दलील है कि *तहज्जुद और तरावीह एक ही नमाज़ के 2 नाम हैं.*
इसके अलावा इस हदीस पर गुफ़्तगू करते हुए अनवर शाह कश्मीरी (रह०) लिखते हैं कि “ *तहज्जुद और तरावीह एक ही नमाज़ हैं और इनमें कोई फ़र्क़ नहीं है.*.
📚﴾ फ़ैज़ुल बारी (बुख़ारी की शरह)2/420 ﴿
जाबिर (रज़ि०) से रिवायत है कि ‘ हमें रसूलुल्लाह ﷺ ने रमज़ान में (रात की) नमाज़ पढ़ाई, आपने 8 रक

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